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Aircraft Career: भारत हर हाल में बनाएगा तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर, नेवी चीफ का ऐलान, चीन की अब खैर नहीं!

इंडो-पैसिफिक में चीन लगातार अपने प्रभुत्व का विस्तार कर रहा है और भारत के लिए खतरे पैदा कर रहा है, लेकिन भारत के नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी ने पहली बार खुलासा किया है, कि “भारतीय नौसेना युद्ध के लिए हर वक्त तैयार है, विश्वसनीय बनी हुई है।”

उन्होंने कहा, कि “भारतीय नौसेना एकजुट है और भविष्य के लिए तैयार बनी हुई है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास (SAGAR) के नजरिए के मुताबिक सुरक्षित समुद्र और सुरक्षित समुद्री वातावरण सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।”

भारत ने स्वीकार की चीन की चुनौती

यूरेशियन टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक स्पेशल इंटरव्यू में एडमिरल त्रिपाठी ने कहा है, कि “भारतीय नौसेना, अन्य हितधारकों के साथ, राष्ट्र के समुद्री हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह तैयार है। हमारे पास विश्वसनीय क्षमता है और हम नई चुनौतियों का सामना करने के लिए लगातार विकसित हो रहे हैं।”

हालांकि, उन्होंने चीन की ताकत को भी स्वीकार किया है। उन्होंने कहा, कि “पिछले 10 वर्षों में, चीन ने अपनी नौसेना का तेज गति से आधुनिकीकरण किया है और भारतीय नौसेना के आकार से ज्यादा युद्धपोतों को शामिल किया है। और, चीन ने 2008 से एंटी-पायरेसी एस्कॉर्ट फोर्स (APEF) के बहाने हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी स्थायी मौजूदगी बनाए रखी है।

इसके अलावा, नेवी चीफ ने माना “चीनी रिसर्च जहाज, सैटेलाइट ट्रैकिंग जहाज और गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाली नावें भी हिंद महासागर में तेजी से तैनात की जा रही हैं। चीनी, दुनिया भर में बंदरगाह और समुद्री बुनियादी ढांचे के विकास परियोजनाओं में भी निवेश कर रहे हैं, जिनमें से लगभग 20 हिंद महासागर में ही किए जा रहे हैं, जो इस क्षेत्र में बने रहने की उनकी इच्छा को दर्शाता है।”

वहीं, एक ओर सतह, उप-सतह, एयरोस्पेस और साइबर जैसे आयामों और दूसरी ओर ‘ब्राउन वाटर’ और ‘ब्लू वाटर’ जैसे क्षेत्रों के संदर्भ में भारतीय नौसेना की ‘क्षमता’ और ‘योग्यताओं’ के बीच संतुलन की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर एडमिरल त्रिपाठी ने कहा, कि “भारतीय नौसेना एक अच्छी तरह से संतुलित बहुआयामी नेटवर्क बल के निर्माण की परिकल्पना करती है, जो लक्ष्य पर आयुध पहुंचाने और संघर्ष के पूरे स्पेक्ट्रम में प्रभाव डालने में सक्षम हो।”

प्रस्तावित थिएटर कमांड में भारतीय नौसेना की भविष्य की भूमिका के सवाल पर नौसेना प्रमुख ने कहा, कि ठभारत एक समुद्री राष्ट्र है, जिसका हिंद महासागर क्षेत्र और उससे आगे के विशाल विस्तार में समुद्री हित बढ़ रहा है।”

तीसरे एयरक्राफ्टर पर नेवी चीफ ने क्या कहा?

ऐसे समय में, जब भारत को तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर की बजाय ज्यादा पनडुब्बियों की जरूरत होने की बात जोर दे रहा है, एडमिरल त्रिपाठी ने जोर देकर कहा कि “एयरक्राफ्ट कैरियर, निश्चित रूप से राष्ट्र की आवश्यकता के रूप में उभरा है, जैसा कि रक्षा संबंधी स्थायी समिति (SCOD) ने 17वीं लोकसभा की अपनी 36वीं रिपोर्ट में भी उजागर किया है।”

उन्होंने कहा, कि “एयरक्राफ्ट कैरियर, भारतीय नौसेना के ऑपरेशन की अवधारणा के केंद्र में हैं। एयरक्राफ्ट कैरियर पर केंद्रित एक कैरियर, युद्ध समूह समुद्र में समुद्री शक्ति को प्रदर्शित करने का एक साधन है। यह एक आत्मनिर्भर और समग्र बल है, जो कई तरह के ऑपरेशनल कामों को करने में सक्षम है, जिसे कोई अन्य प्लेटफॉर्म नहीं कर सकता। जहाज और इसके एयरविंग – लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर – एक युद्ध-लड़ाकू प्रणाली का गठन करते हैं, जिसमें लचीलापन और गतिशीलता है और इसे उभरती चुनौतियों के आधार पर तेजी से फिर से तैनात किया जा सकता है।”

क्या भारत बनाएगा तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर?

इंडियन नेवी के पास फिलहाल दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं। रूस निर्मित INS विक्रमादित्य और भारत में बना स्वदेशी INS विक्रांत। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत जिस तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर को बनाने पर विचार कर रहा है, उसे ICA-2 या INS विशाल नाम दिया जा सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिकस 65 हजार मीट्रिक टन वाले INS विशाल को बनाने में करीब 6.25 अरब डॉलर (50,000 करोड़ रुपये) का खर्च आएगा और इसका निर्माण कोचीन शिपयार्ड में किया जाएगा। भारतीय नौसेना 2030 तक इस विशाल जहाज को अपने बेड़े में शामिल करने को लेकर आशावादी है, जिससे उसकी लड़ाकू क्षमताएं और बढ़ जाएंगी।

एयरक्राफ्ट कैरियर के निर्माण में आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत की यात्रा काफी कठिन रही है। देश के पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर, आईएनएस विक्रांत को पूरा होने में, 1999 में इसके डिजाइन की शुरुआत से लेकर सितंबर 2022 में इसके चालू होने तक, 23 साल लग गए। और अब उम्मीद है, कि तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने में करीब 10 सालों का वक्त लग सकता है।

भारत को क्यों हर हाल में चाहिए तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर?

चीन का तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर फुजियान समुद्र में उतर चुका है, लिहाजा तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर के निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाना, भारत की एक रणनीतिक जवाबी कार्रवाई हो सकती है, जो इस क्षेत्र में शक्ति के नाजुक संतुलन को बनाए रखने के उसके संकल्प का संकेत है।

चीन ने जिस फुजियान एयरक्राफ्ट कैरियर का निर्माण किया है, उसका वजन 80,000 मीट्रिक टन है और यह टाइप-003 क्लास का एयरक्राफ्ट कैरियर है। अमेरिका के पास ही निमित्ज-क्लास एयरक्राफ्ट कैरियर है, जो चीनी एयरक्राफ्ट कैरियर से ज्यादा वजनी है, जिसका वजन 87 हजार मीट्रिक टन है, जबकि फोर्ड क्लास की क्षमता 100,000 मीट्रिक टन है।

हालांकि, चीन के विपरीत, भारत एक ज्यादा अनुभवी विरासत होने का दावा करता है, जिसने अपना पहला एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत (ब्रिटिश रॉयल नेवी से प्राप्त) को 1961 की शुरुआत में ही चालू कर दिया था। लेकिन इस ऐतिहासिक लाभ के बावजूद, चीन ने बढ़ते जहाज निर्माण के कारण तेजी से अंतर को पाट दिया है।

और एक एयरक्राफ्ट कैरियर, सिर्फ एक जहाज नहीं है, बल्कि यह एक सावधानीपूर्वक इंजीनियर किया गया तैरता हुआ महानगर है, जो समुद्र में एक शहर जो पारंपरिक नौसैनिक वास्तुकला की सीमाओं को पार करता है। भारत और चीन अपने वाहक बेड़े को मजबूत करने की होड़ में हैं, इन दो एशियाई शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धी रेस के लिए मंच तैयार है। इसलिए, तीसरे विमानवाहक पोत के लिए भारत की खोज एक सावधानीपूर्वक गणना की गई रणनीतिक रणनीति के रूप में उभरती है।

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