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Bangladesh: ‘भारत में इलाज के लिए आए चिन्मय कृष्ण दास के वकील, क्या उनकी सुरक्षा अब भी खतरे में है?’

बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति

बांग्लादेश के प्रमुख हिंदू वकील रवींद्र घोष, जो जेल में बंद हिंदू भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास का बचाव कर रहे हैं, वर्तमान में पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में हैं. वे यहां इलाज के लिए आए हैं और अपने बेटे राहुल घोष के साथ रह रहे हैं.

राहुल ने अपने पिता की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है. 74 वर्षीय रवींद्र घोष रविवार शाम अपनी पत्नी के साथ भारत पहुंचे. तीन साल पहले हुए एक सड़क हादसे के बाद से उनका इलाज कोलकाता में होता रहा है. उनका बेटा राहुल, जो भारत में ही पला-बढ़ा है और बैरकपुर में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता है, ने बताया, ‘मेरे पिता यहां अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए आते हैं. लेकिन इस बार, उनके काम को लेकर खतरा और बढ़ गया है.’

सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंताएं

राहुल ने कहा, ‘मैंने उनसे गुज़ारिश की है कि वे कुछ समय तक भारत में ही रुकें, क्योंकि बांग्लादेश लौटने पर उनकी जान को खतरा है. लेकिन मेरे पिता चिन्मय दास प्रभु का केस लड़ने के लिए अड़े हुए हैं. यह हमें डराता है.’ घोष को भी इस खतरे का एहसास है. उन्होंने पहले ही स्पष्ट किया था, ‘मैं जानता हूं कि मेरे खिलाफ झूठे मामले दर्ज हो सकते हैं और मेरी जान को खतरा है, लेकिन मैं पीछे हटने वाला नहीं हूं.’

कौन हैं चिन्मय कृष्ण दास?

चिन्मय कृष्ण दास, बांग्लादेश सम्मिलिता सनातनी जागरण जोत के प्रवक्ता, इस महीने की शुरुआत में ढाका के हजरत शाहजलाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किए गए थे. वे चटगांव में एक रैली में भाग लेने जा रहे थे. अदालत ने उनकी ज़मानत अर्जी खारिज कर दी और उन्हें 2 जनवरी तक जेल भेज दिया.

बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति

बांग्लादेश में हिंदू समुदाय, जो सबसे बड़ा अल्पसंख्यक है, लंबे समय से भेदभाव और हिंसा का सामना कर रहा है. 1971 के मुक्ति संग्राम के समय हिंदू आबादी देश की कुल जनसंख्या का 22% थी, जो अब घटकर केवल 8% रह गई है. हाल के राजनीतिक उथल-पुथल ने हालात और बदतर कर दिए हैं. प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद उपजे संकट ने अल्पसंख्यकों को और असुरक्षित बना दिया है. हिंसा और विस्थापन की घटनाएं आम हो गई हैं.

क्या होगा आगे?

रवींद्र घोष जैसे अधिवक्ताओं के लिए बांग्लादेश में काम करना अब और भी खतरनाक हो गया है. चिन्मय कृष्ण दास जैसे भिक्षुओं के बचाव में जुटे इन वकीलों की सुरक्षा और उनके प्रयास सवालों के घेरे में हैं. घोष की भारत यात्रा ने भले ही अस्थायी राहत दी हो, लेकिन सवाल यही है कि क्या उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है? बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए क्या पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं? यह एक ऐसा मुद्दा है जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान भी मांगता है.

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