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बांग्लादेश से आए और शादी करके सीमापुरी की झुग्गियों में रहने लगे, DDA के बसाए इलाके में ऐसे आए घुसपैठिये

कांग्रेस शासन में चला था बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ अभियान

दिलशाद गार्डन को डीडीए ने बसाया है। इस क्षेत्र के पास एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है। उसे देखकर मुंबई की धारावी की छवि आंखों के सामने आ जाती है।

सड़क के दोनों तरफ कबाड़ के अंबार लगे हैं।

सड़क पर महिला व पुरुष और उनके बच्चे कबाड़ बीनते रहते हैं। यहां तीन बस्तियां हैं, जिसमें 15 हजार झुग्गियाें में करीब 90 हजार लोग रहते हैं। बंगाल मूल के अधिकतर लोग रहते हैं। आरोप है उनकी आड़ में बांग्लादेश से अवैध रूप से आए लोग भी रह रहे हैं। दोनों की भाषा लगभग एक जैसी है, ऐसे में लोग फर्क नहीं कर पाते।

जागरण की टीम झुग्गी बस्तियों में पहुंची

दैनिक जागरण की टीम शुक्रवार को झुग्गी बस्ती में लोगों के बीच गई। यहां कुछ लोग ऐसे मिले जिनके परिवार के पूर्वज 1970 में बांग्लादेश से आए थे। उनकी मौत हो गई और उनकी पीढ़ियां यहां रह रही हैं। कुछ ऐसी महिलाएं भी थी जिनके पति बांग्लादेश के रहने वाले हैं और वह दिल्ली की हैं। उनके बच्चे भी हो गए हैं।

सवाल यह है जो बच्चे यहां पैदा हुए वह बांग्लादेशी है या नहीं। उनके आधार कार्ड, पहचान पत्र व जन्म प्रमाण पत्र तक बने हुए हैं। जब उनसे पूछा गया कि उनके कागजात कैसे बन गए वह लोग तो दूसरे देश से आए हैं। उसपर उन्होंने कहा उनके पूर्वजों के कागजात कैसे बने थे, उन्हें नहीं पता। माता-पिता के कागजात थे, इसलिए उनके भी बन गए। वह खुद को भारतीय मानते हैं।

कांग्रेस शासन में चला था बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ अभियान

झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोगों ने बताया कि वर्ष 1977 के आसपास दिलशाद गार्डन के पास नसबंदी कॉलोनी बसाई गई थी। नसबंदी करवाने वाले लोगों को सरकार ने जमीन दी थी। उसके आसपास के क्षेत्र में झुग्गियां बस गई। काम की तलाश में बंगाल के लोग आकर झुग्गी में बस गए। झुग्गी में रहने वाले लोग कबाड़ बीनने का काम करते हैं। वर्ष 2000 से लेकर 2003 के बीच काफी संख्या में बांग्लादेशी सीमापुरी की झुग्गी में आ गए थे। केंद्र सरकार ने बड़े स्तर पर अभियान चलाकर उन लोगों को पकड़ा था। उसके बाद यहां बांग्लादेशी लोगों के खिलाफ अभियान नहीं चला।

मेरे पति का नाम शकूर है। वह बचपन में बांग्लादेश से सीमापुरी आया था। मेरा परिवार मूलरूप से कोलकाता है। 40 वर्षों से सीमापुरी झुग्गी में रह रहे है। वर्ष 2006 में मेरी और शकूर की शादी हुई थी। हम दोनों के चार बच्चे हैं। मेरे पति के आधार समेत सब कागजात दिल्ली के हैं। वह बचपन के बाद कभी बांग्लादेश नहीं गए। – जमीला, सीमापुरी झुग्गी

मेरे दादा और पिता बांग्लादेश से सीमापुरी आए थे। मैं सीमापुरी झुग्गियों में पैदा हुई। यही बड़ी हुई और शादी भी यहीं पर हुई। मेरे दो बच्चे हैं। मैं कभी बांग्लादेश नहीं गई और न ही वहां पर हमारा कोई रिश्तेदार है। माता-पिता की मौत हो चुकी है। – रोली, सीमापुरी झुग्गी

अभियान शुरू आते ही क्षेत्र से गायब हुए आपराधिक प्रवृत्ति के लोग

घुसपैठियों का पता लगाने के लिए पुलिस सीमापुरी की झुग्गी बस्ती में अभियान चला रही है। इस अभियान से घबराकर आपराधिक प्रवृत्ति के लोग यहां से गायब हो गए हैं। यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस की सक्रियता बढ़ने से आपराधिक वारदात करने वाले लोग क्षेत्र में नजर नहीं आ रहे हैं। पकड़े जाने के डर से वह क्षेत्र से किसी दूसरे जगह चले गए हैं।

आपराधिक वारदात के लिए जानी जाती हैं यह झुग्गियां

इन झुग्गी बस्ती से कच्छा बनियान गिरोह ऑपरेट होता था। वर्ष 1990 से लेकर 2010 तक गिरोह का आतंक यमुनापार में था। गिरोह के बदमाश पांच से छह के ग्रुप में कच्छा बनियान पहनकर अपने शरीर पर तेल लगाकर निकलते थे। उनके पास हथियार भी होते थे। यह लूट व झपटमारी की वारदात करते थे। पुलिस ने किसी तरह गिरोह पर काबू पाया।

स्थानीय लोगों का कहना है झुग्गियों में सघन आबादी है। अवैध शराब, गांजा, स्मैक समेत अन्य मादक पदार्थ की तस्करी यहां धड़ल्ले से होती है। यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश के नजदीक है। पुलिस छापेमारी के लिए पहुंचती है तो लोग संकरी गलियों का फायदा उठाकर साहिबाबाद पहुंच जाते हैं।

बांग्लादेश के घुसपैठियों का पता लगाने के लिए पुलिस अभियान चलाकर सर्वे कर रही है। 32 लोगों के कागजात जमा किए गए हैं। सत्यापन के लिए उन्हें गृह मंत्रालय भेजा जाएगा।

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