क्राइमराजनीति

रमजान (‘शांति’ का महीना) में नमाज कर निकली भीड़ ने बुद्ध-महावीर की तोड़ी थी मूर्तियाँ, अखिलेश सरकार ने कोर्ट को बताया था ‘मनोरंजन’ के लिए थीं प्रतिमाएँ

वर्ष 2012 में लखनऊ में महावीर और बुद्ध की मूर्तियाँ मुस्लिम भीड़ ने तोड़ दी थीं। तब की अखिलेश सरकार ने इस भीड़ पर नगण्य कार्रवाई की थी।

मुस्लिमों का एक कॉन्सेप्ट है। इसका नाम है ‘उम्माह’, वैसे तो इसका अर्थ होता है राष्ट्र, लेकिन इसका प्रैक्टिकल मतलब होता है कि पूरी दुनिया के मुस्लिम एक हैं।

यानि सूडान का मुस्लिम बांग्लादेश के मुस्लिम का साथ देगा, क्योंकि वह उसका इस्लामी भाई है। इसी के चलते 1920 के दशक में जब तुर्की में खलीफा को हटाया गया, तो भारत में मुस्लिमों ने विद्रोह कर दिया। यह कोई अकेली ऐसी घटना नहीं है। भारत लगातार ऐसी घटनाएँ देखता आया है। ऑपइंडिया आपके लिए 2012 की ही एक ऐसी घटना की कहानी लाया है।

यह मामला उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से जुड़ा हुआ है लेकिन इसके तार असम-म्यांमार तक जुड़े हुए हैं। घटना 2012 की है। इसकी शुरुआत होती है लखनऊ से सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर असम और म्यांमार से। म्यांमार में रोहिंग्या और बौद्धों के बीच लड़ाई होती है। म्यांमार की फ़ौज रोहिंग्याओं को भागने पर मजबूर कर देती है। रोहिंग्याओं के गाँव जलाए जाते हैं। दूसरी तरफ असम में मुस्लिम 4 बोडो लड़कों को मार देते हैं। इससे दोनों समुदाय में दंगा भड़कता है। असम जल उठता है। कुछ मुस्लिम भी मारे जाते हैं।

इससे पूरे देश में रहने वाला मुस्लिम गुस्सा हो जाता है। रमजान के ‘पवित्र’ महीने के अंतिम जुमे की नमाज, यानि अलविदा की नमाज के बाद एक विरोध प्रदर्शन का ऐलान होता है। मुस्लिमों के जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द जैसे संगठन कहते हैं कि असम और म्यांमार में मुलिमों पर जुल्म हो रहा है जिसके खिलाफ हर एक मुस्लिम सड़क पर उतरेगा। यहाँ भी उम्मा का कॉन्सेप्ट लगाया जाता है। ये तारीख थी 17 अगस्त, 2024। दिन तो पहले ही बता दिया गया है कि शुक्रवार।

नमाज के बाद हजारों मुस्लिमों की भीड़ सड़कों पर उतरती है। यह पूरी कार्रवाई लखनऊ की टीले वाली मस्जिद से चालू हुई। मुस्लिम भीड़ ने इस मस्जिद से निकलने के बाद तोड़फोड़ चालू की। रोड पर जो दिखा, उसके साथ बदतमीजी की। इसके बाद ये भीड़ इसी इलाके में बने महावीर पार्क (जिसे हाथी पार्क के तौर पर जाना जाता है) में घुसी। यहाँ इसने महावीर स्वामी की मूर्ति क्षतिग्रस्त की। उनकी मूर्ति के साथ बर्बरता की गई।

भगवान महावीर की यह 9 फीट ऊँची पद्मासन प्रतिमा 25 अप्रैल, 2002 को स्थापित की गई थी। तब उत्तर प्रदेश सरकार ने भगवान महावीर की 2600वीं जयंती के अवसर पर यह प्रतिमा स्थापित की थी। पहले हाथी पार्क के नाम से मशहूर इस पार्क का नाम बदलकर भगवान महावीर पार्क कर दिया गया था। भगवान महावीर की प्रतिमा को आचार्य 108 श्री विवेकसागरजी महाराज और अन्य जैन साधुओं के नेतृत्व में जैन समुदाय के सदस्यों द्वारा जुलूस के रूप में लाया गया था। लेकिन जिन जैनों का इस हिंसा से कोई लेना-देना तक नहीं था उनको भी निशाना बनाया गया।

इसी के साथ भीड़ बुद्धा पार्क में भी घुसी। यहाँ इस भीड़ ने बुद्ध की मूर्ति पर हमला किया। टोपी लगे हुए युवाओं ने ध्यान की मुद्रा में बैठे बुद्ध की मूर्ति पर हमला किया। लोहे के डंडे और साइन बोर्ड से उनकी मूर्ति को तोड़ने की कोशिश की गई। इस पूरे वाकये की तस्वीरें आज भी जब तब सामने आती हैं। बुद्ध पर होते इस हमले को देखकर आपको अफगानिस्तान के बामियान की याद आ जाएगी। वहाँ भी तालिबान (वैसे तो तालिब का मतलब छात्र होता है, लेकिन यहाँ आतंकी से है) वालों ने बुद्ध की मूर्तियों को विस्फोटक लगा कर उड़ा दिया था।

ये सब काम वहाँ हो रहा था जहाँ पर इस देश के सबसे बड़े सूबे की सरकार बैठती है। लेकिन सरकार भला उन पर क्यों कर एक्शन लेने लगती। क्योंकि सरकार थी समाजवादी पार्टी की। उसके मुखिया थे अखिलेश यादव। ये वही अखिलेश यादव थे, जिनके राज में बरेली में कांवड़ यात्रा के डीजे बंद हो जाते थे। जब पूरे दिन मुस्लिम भी ने खूब तबाही मचा ली, तब जाकर कहीं पुलिस ने उनको तितर बितर किया। इस हिंसा के बाद जैन और बुद्ध समाज ने प्रश्न उठाए। उन्होंने पूछा कि आखिर उनके आराध्य का इसमें क्या दोष था।

लेकिन जैन समाज के साथ मजाक यहीं तक नहीं सीमित था। जब हाई कोर्ट में इस बात के लिए याचिका डाली गई कि सरकार उन लोगों पर कार्रवाई करे जिन्होंने महावीर स्वामी की मूर्ति तोड़ी और नई मूर्ति भी लगवाए तो अखिलेश सरकार ने चौंकाने वाला जवाब दिया। अखिलेश सरकार के नौकरशाह ने हाई कोर्ट को कहा कि साहब वो उन मूर्तियों का कोई ख़ास धार्मिक महत्त्व थोड़े था, वो तो हमें सैर-सपाटे के लिए आने वालों की मौज के लिए लगाई गईं थी। अखिलेश सरकार के दूसरे नौकर शाह ने यह तक कह दिया कि साहब मूर्ति टूटी ही नहीं।

इस पर कोई ने फटकार लगाई। इसके बाद कोर्ट को आदेश देना पड़ा कि मूर्तियाँ या तो रिपेयर करवाओ या फिर नई लगवाओ। सरकार ने भरोसा दिया कि लगवाएँगे लेकिन जब कई दिनों तक कार्रवाई नहीं हुई, तब फिर कोर्ट ने फटकारा। कोर्ट ने 2017 में सरकार को इस बात पर भी फटकार लगाई कि आखिर उन लोगों पर क्या कार्रवाई हुई है जिहोने यह मूर्तियाँ तोड़ी थी। इस पर भी तब की सरकार ने कोई साफ़ जवाब नहीं दिया।लेकिन ये सब कहानी अब क्यों बताई जा रही है? दरअसल, इस मामले में जिन लोगों ने जनहित याचिका लगाई थी उनके वकील थे हरि शंकर जैन। हरि शंकर जैन के ही बेटे विष्णु शंकर जैन अब संभल में लड़ाई लड़ रहे हैं। उनको धमकियाँ दी जा रही हैं, मुस्लिमों से कहा जा रहा है कि उनका चेहरा पहचान लें। उन्होंने इस मामले में शिकायत भी दर्ज करवाई है। उन्होंने इस लखनऊ वाले मामले की याद भी लोगों को दिलाई है। उन्होंने कोर्ट का वह आदेश साझा किया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!