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PAK से आजादी और पार्टी से हटाया ‘मुस्लिम’ शब्द और अब बैन… बांग्लादेश में शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग का इतिहास

पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से देश की सबसे पुरानी अवामी लीग पार्टी कई चुनौतियों का सामना कर रही है. दशकों तक बांग्लादेश पर राज करने वाली इस पार्टी के कई नेता देश छोड़ने को मजबूर हैं.

है. लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब अवामी लीग पार्टी के सामने इस तरह की मुश्किलें खड़ी हुई हैं. अवामी लीग का इतिहास बताता है कि इस पार्टी ने अपने करीब 76 साल के सफर में कई पड़ाव देखे हैं, जिनमें ज्यादातर परेशानियों से भरे ही रहे हैं…

पाकिस्तान में हुआ था इस पार्टी का जन्म

अवामी लीग पार्टी का जन्म भारत से पाकिस्तान के अलग होने के दो साल बाद यानी कि 1949 में हुआ था. तारीख थी 23 जून जब पूर्व पाकिस्तान अवामी मुस्लिम लीग नामक एक नई राजनीतिक पार्टी का गठन किया गया था. तब मौलाना अब्दुल हामिद खान भासानी को इसका अध्यक्ष बनाया गया था. उनके अलावा शमसुल हक को महासचिव और शेख मुजीबुर रहमान को संयुक्त सचिव चुना गया था.

इस पार्टी का जन्म ही पाकिस्तान में मुस्लिम लीग के वर्चस्व के विरोध में हुआ था. इस पार्टी को सबसे ज्यादा समर्थन तब पूर्वी बंगाल (जिसे बाद में पूर्वी पाकिस्तान नाम दिया गया) में मिला.

4 साल बाद पार्टी ने ‘मुस्लिम’ शब्द हटाया

पार्टी के जन्म के करीब 4 साल बाद 1953 में इसके नाम से ‘मुस्लिम’ शब्द हटा दिया गया. इसका मकसद धर्मनिरपेक्षता और गैर-सांप्रदायिकता की स्थापना का प्रयास करना था. इस पार्टी ने पाकिस्तान के कई चुनावों में भी हिस्सा लिया और अपना दमखम दिखाया.
बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध का नेतृत्व करने वाली ये पार्टी 1970 के चुनाव में बहुमत हासिल करने के बावजूद पाकिस्तान की सत्ता में नहीं आ सकी थी. इसके बाद अलग देश की मांग को लेकर जंग छिड़ गई.

आखिरकार 16 दिसंबर 1971 को जीत के बाद पार्टी ने बांग्लादेश की राष्ट्रीय सरकार बनाई. 1972 में शेख मुजीब के नेतृत्व में पार्टी का नाम बदलकर “अवामी लीग” कर दिया गया. लेकिन कुछ ही सालों में अकाल, भुखमरी और तमाम मोर्चों पर समस्या आने के बाद अवामी लीग की लोकप्रियता में भारी कमी आई. 1975 में 15 अगस्त को शेख मुजीबुर रहमान हत्याकांड के बाद पार्टी के हाथों से सत्ता निकल गई.

लंबे समय तक विपक्ष में रही अवामी लीग

अवामी लीग उस हत्याकांड के बाद लगातार 21 वर्षों तक विपक्ष में रही थी. आखिरकार जून, 1996 में आयोजित चुनाव में जीत कर अवामी लीग 21 साल बाद सत्ता में लौटी थी. उसके बाद से शेख हसीना का बांग्लादेश की सियासत में दबदबा देखने को मिला. लेकिन, पिछले साल छात्रों के एक आंदोलन के चलते उन्हें देश छोड़ना पड़ा. एक बार फिर अवामी लीग के सामने अपना वजूद बचाने की चुनौती है. बांग्लादेश में इन दिनों अवामी लीग से जुड़ी तमाम यादों को मिटाया जा रहा है. शेख मुजीब की प्रतिमाओं को तोड़ा जा रहा है. लेकिन शेख हसीना ने साफ किया है कि वो इन तमाम चुनौतियों से निकलेंगी.

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